अजय सिंह को हटाने की मांग : क्या एसपी को हटाने से होगा समस्या का समाधान ?



हनुमानगढ़(कुलदीप शर्मा) जिले में अब राजनीति पूरी चरम पर है। अब हर छोटे से बड़ा नेता मामलो को सूंघता हुआ घूम रहा है। पक्ष व विपक्ष का कुछ पता भी लगाना अब मुश्किल हो रहा है। प्रदेश में सत्ता पक्ष के भी मंत्री अपने ही सीएम के खिलाफ बयानबाजी करते नहीं थक रहे तो वहीं विपक्ष अब सोशल मीडिया पर जमकर एक्टिव हो गयी है। हर छोटी व बड़ी बात का बतंगड़ बनाने का पूरा प्रयास किया जा रहा है। हमारा हनुमानगढ़ जिला भी अब राजनीति से अछूता नहीं रह रहा है। इन दिनों में एसपी को हटाने के प्रयास किये जा रहे हैं वो कितने जायज है इस पर भी खबर में चर्चा रहेगी। बार व एसपी के बीच तकरार धीरे-धीरे बढ़ गयी है। गांव,मोहल्ले व कॉलोनियों को घेर कर अवैध कारोबारियों के बीच पुलिस का खौफ पैदा करने वाला एसपी अब खुद को शायद अकेला समझ रहा होगा। खैर चोरी का खुलासा करना पुलिस का कार्य है और जल्दी से जल्दी से चोर पकड़ने भी चाहिए। 

एसपी को हटाने की मुहिम शुरू कितनी सही कितनी गलत!

हनुमानगढ़ एसपी डॉक्टर अजय सिंह को हटाने की अब सोशल मीडिया से लेकर पत्रों के माध्यम से सीएमओ तक आवाज उठाई जा रही है। जिले में बढ़ती चोरियों व नशे को आधार बनाया गया है। बार संघ के ही एक अधिवक्ता ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर एसपी को तुरंत हटाने की मांग की गई है। क्योंकि अधिवक्ता के घर हुई चोरी के मामले में एसपी और अधिवक्ताओं के बीच विवाद गहराया हुआ है। ऐसे में अधिवकाताओं की एसपी को हटाने की मांग के पीछे की मूल वजह ये विवाद ही है। खैर अधिवक्ताओं को कानून के जानकार के रूप में सबसे जागरूक और जिम्मेदार माना  जाता है। इसलिए बार की तरफ से चोरी के खुलासे की मांग को तेज किया जाता तो बेहतर था, लेकिन यहां तो टिप्पणियां अब चोरी की बजाए एक व्यक्ति पर अटक कर रह गयी है। खैर जब अधिवक्ता बड़ा दिल नहीं दिखा रहे तो एसपी को बड़ा दिल दिखाना चाहिए ताकि बार और पुलिस के मध्य ये तकरार खत्म हो। ओर हां ऐसा नहीं है चोरियां और नशे का बढ़ता व्यापार कोई नया विषय है।  एसपी कोई भी रहा हो हर दौर ये घटनाएं घटती रही है। इसलिए अब एसपी को हटाने की मांग भी राजनीति से ज्यादा कुछ नहीं है। साथ ही इस बात में कोई शक नहीं है कि चोरी,लूट,डकैती और नशा ऐसा अभिशाप बन गया है जिसे अब खत्म करने के लिए पुलिस,प्रशासनिक, धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर प्रयास करना होगा। अन्यथा एक दिन हम 'उड़ता राजस्थान' बन जाएंगे।बहरहाल अब चुनाव नजदीक है तो हर छोटे से लेकर बड़ा मामला चुनावी माहौल में भुनाया जाएगा। ऐसे माहौल में कांस्टेबल से लेकर टाइगर तक को हटाने के भी होंगे। इसलिए ध्यान रहे कोई भी अपना कंधा न रखे किसी के पास।

पुलिस का इकबाल बुलंद किया अब खुद निराश!

हनुमानगढ़ जिले के पुलिस कप्तान ने अपनी पारी की शुरुआत में ही गांवों,कॉलोनियों और मोहल्लों को घेरकर अपराधियों को पकड़ने वाली अपनी कार्यशैली से सबको अवगत करवा दिया था। संभवत हनुमानगढ़ जिले में एनडीपीएस एक्ट में सबसे ज्यादा कार्रवाई करने वाले एसपी डॉक्टर अजय सिंह ही होंगे। अपने कार्यशैली के चलते पुलिस का इकबाल बुलंद करने वाले एसपी अब खुद को निराश महसूस कर रहे हैं। खैर पब्लिक है सब जानती है! जिले के पुलिस अधिकारियों से बात करने पर पता चला कि अपने डिपार्टमेंट में एक कांस्टेबल तक के लिए जान फूंक देता है एसपी! हालांकि शुरुआती समय से लेकर अब तक एसपी अजय सिंह मीडिया के निशाने पर भी रहे हैं। उसका सबसे बड़ा कारण मीडियाकर्मियों के फोन नहीं उठाना भी रहा है। पुलिस को राजनीति से मुक्त नहीं किया जा सकता और ये ही वजह है कि करवाता कोई ओर है और भुगतता कोई ओर ही है। बाकी आप सभी समझदार हो।

चार साल बेसहारा छोड़ा अब जता रहे अपनापन

चार साल तक जनता को बेसहारा छोड़ने के बाद अब हमदर्दी जताने वालों की बाढ़ आनी शुरू हो गयी है। अब हर छोटा-बड़ा नेता एक-एक जानकार को फोन करके पूछ रहा है कि भाई कोई काम है तो बताओ मैं तैयार हूं। बोलो क्या लैटर लिखना है किसको लिखना है। अरे सरकारें किसकी होती है बताओ अपने सरकार के खिलाफ ही बोल देंगे। हमे तो आपसे प्यार है आप ही भगवान हो। ये बाते अब हर रोज सुनने को मिल रही है।

प्रशासन जो करे पुलिस पर निशाना सॉफ्ट कॉर्नर

जिले में दो प्रकार के प्रशासन है। एक पुलिस प्रशासन जिसके जिम्मे कानूनी न्याय दिलवाना है दूसरा है जिला प्रशासन जिसका प्रधान कलक्टर है। पुलिस को निशाना बनाना आसान हो जाता है। वहीं कलक्टर, एडीएम, एसडीएम,तहसीलदार, नायब और डीएसओ के खिलाफ बोलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा होता है। हजारों चक्कर एक कार्य के लिए लगवा दिए जाते हैं। शिकायतों को सीएमओ भेजो या खुद प्रभारी मंत्रियों को भेजो परिणाम हमेशा सिफ़र ही रहता है। उधर पुलिस आपकी न सुने तो कोर्ट का सहारा ले ओर मुकदमा दर्ज करवा लें। लेकिन कलक्टर से लेकर तमाम प्रशासनिक अधिकारियों की कोई जिम्मेदारी तय नहीं। जितना मर्जी सबूतों की पोटली सरकार को भेजो या मंत्रियों को दो एक तहसीलदार भी नहीं हटता,कलक्टर तो फिर भी सबसे बड़ा प्रशासक है। सीधी सी बात है कुछ नहीं उखाड़ सकते इनका!

नेताओ की नेतागिरी में अपना कंधा न दे जनता

गरीबों की लड़ाई ना तो किसी नेता ने लड़ी है और ना ही कोई लड़ सकता है! यह लड़ाई तो सिर्फ अमीरों की है और अमीर ही लड़ते हैं! गरीबों की सुनने के लिए ना तो सत्ता पक्ष के पास समय है और ना ही विपक्ष के पास! थोड़ा बहुत माकपा पार्टी सुनती है लेकिन ऊपर वाले उनकी नहीं सुनते हैं! इसलिए चुनाव का भी वक्त है अपने आप को संभाले और अपना कंधा चुनावी नेताओं के पास गिरवी ना रखें। क्योंकि अब हो सकता है अब यह नेता आपके हर काम करवाते हुए नजर आएंगे, लेकिन ज्ञात रहे सवाल जरूर कीजिएगा की चार साल आप आखिर थे कहां! अब तो यह आपको भगवान भी मान सकते हैं! लेकिन 4 साल तक कोई भी नेता इन भगवानो का कोई दर्शन तक नहीं करना चाहता! मन में वही पीड़ा चुनावी वक्त में क्यों याद आती है जनता!

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